अमिताभ बच्चन फिल्मी दुनिया का बादशाह माना जाते है आज फिल्मों के कारण ही अमिताभ बच्चन इतनी बड़ी बुलंदियों को छू पाऐ है लेकिन इन फिल्मों के लिए उन्हें क्या-क्या सहना पर आएगी बहुत कम लोग जानते होंगे जानकारी के लिए आपको बता दें कि अमिताभ बच्चन को फिल्मों के लिए उनकी आवाज के कारण बार-बार रिजेक्ट किया जाता था लेकीन अमिताभ बच्चन की लंबाई को देखते हुए उनको फिल्म में काम करने का मौका दिया गया।
अमिताभ बच्चन की पहली फिल्म सात हिंदुस्तानी है, लेकिन शायद कम ही लोग जानते हैं कि गोवा के संघर्ष की कहानी का आइडिया निर्देशक ख्वाजा अहमद अब्बास को उनके सहायक मधुकर से आया था। मधुकर उन्हें अपनी ट्रेकिंग की रोमांचक कहानियाँ सुनाते थे, कि कैसे वे अहिंसक कमांडो के साथ अपने रास्ते में आने वाले हर पुलिस स्टेशन पर तिरंगा फहराते थे। उन्हें इसे गुप्त रूप से करना था, क्योंकि उन्हें पणजी पहुंचना था जहां वे सार्वजनिक रूप से झंडा फहरा सकते थे और अंततः कैद हो सकते थे। ख्वाजा ने इसे हमारे स्वतंत्रता संग्राम के महाकाव्य के रूप में देखा, क्योंकि कमांडो भारत के सभी हिस्सों से आए थे।
यह राष्ट्रीय एकता की मिसाल थी। ऐसे में सात हिंदुस्तानी की स्क्रिप्ट खत्म करने के बाद वो काफी एक्साइटेड थे. उन्होंने फिल्म में मधुकर की वास्तविक जीवन की साहसिक कहानी को मूल 11 कमांडो के बजाय सात कर दिया। सात रखने के पीछे उनका मानना था कि यह पौराणिक है। दरअसल, इंद्रधनुष में सात रंग होते हैं। यज्ञ के “सात परिक्रमा” के बिना कोई भी हिंदू विवाह पूरा नहीं हो सकता है।
इस फिल्म के लिए छह मुख्य किरदारों का चयन किया गया था, लेकिन अमिताभ बच्चन के किरदार को नहीं चुना जा सका। संयोग से अमिताभ बच्चन को किसी तरह ख्वाजा से मिलवाया गया था। ख्वाजा ने पूछा, ‘क्या आपने पहले कभी फिल्मों में काम किया है?’ अमिताभ ने बड़ी सरलता से कहा, ‘मुझे अब तक कोई नहीं ले गया।’ यह सुनकर ख्वाजा ने पूछा, ‘कौन थे वे लोग?’ अमिताभ ने कुछ प्रमुख नामों का जिक्र किया। ख्वाजा ने फिर पूछा, ‘उसे तुम्हारे साथ क्या गलत लगा?’ अमिताभ ने दो टूक कहा, ‘उन सभी ने कहा कि मैं उनकी हीरोइनों के लिए बहुत लंबा हूं।’ इस पर ख्वाजा ने कहा, ‘ठीक है, हमें ऐसी कोई समस्या नहीं है। एक तरह से हमारी फिल्म में कोई हीरोइन नहीं है। यह सुनकर उत्साहित अमिताभ ने कहा, ‘क्या तुम सच में मुझे अपनी फिल्म में ले रहे हो? परीक्षण के बिना?’ ख्वाजा ने इसका जवाब इस रूप में दिया कि पहले वह अपना चरित्र तय करेंगे, उसके बाद उनका पारिश्रमिक भी तय किया जाएगा।
ख्वाजा ने उन्हें पूरी कहानी पढ़ी तो देखा कि उनके चेहरे पर बहुत उत्साह था। ख्वाजा ने अमिताभ से पूछा, ‘आप कौन सा रोल निभाएंगे?’ अमिताभ ने कहा कि दोनों किरदारों ने उन्हें काफी प्रभावित किया। फिर अंत में दोनों में से एक पात्र का फैसला किया गया। जब पारिश्रमिक तय करने की बात आई तो ख्वाजा ने कहा कि वह उन्हें पांच हजार रुपये से ज्यादा नहीं दे सकते। यह बात साल 1968 के आसपास हुई होगी। यह उस फिल्म में सभी भूमिकाओं के लिए एक मानक पारिश्रमिक था। अमिताभ थोड़ा झिझके। इस पर ख्वाजा ने पूछा कि क्या आप इससे ज्यादा कमा रहे हैं तो उन्होंने बताया कि वह कलकत्ता (अब कोलकाता) में 1600 रुपए प्रतिमाह कमा रहे हैं। ख्वाजा चौंक गए जब अमिताभ ने बताया कि उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया है और बॉम्बे आ गए हैं। उन्होंने कहा, ‘मान लीजिए हम आपको भूमिका नहीं दे सकते?’ तब अमिताभ ने कहा कि ऐसे मौके लेने ही पड़ते हैं। वह इतना जोर से बोलता था कि ख्वाजा उससे प्रभावित हो जाता था।