राहुल गांधी से कोसों दूर है सम्मान जैसा शब्द! जन-विचार (जन-मंच) By: Shyamanand Mishra

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सावरकर शब्द के पहले वीर शब्द का जुड़ना ही वीर सावरकर जी को अपनी एक अलग और अनोखी पहचान दिलाता है। भले ही राहुल गांधी इस बात को स्वीकार करें या न करें लेकिन उनकी दादी श्रीमति इंदिरा गांधी जी भी भारत को आजाद करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाले वीर सावरकर जी को सम्मानित कर चुकी हैं। इंदिरा गांधी जी ने सावरकर को देशभक्त और निडर कहते हुए सार्वजनिक रूप से प्रशंसा की थी। इतना ही नहीं, उनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया गया था। इंदिरा गांधी जी ने अपने निजी कोष अंशदान से सावरकर स्मृति कोष का गठन कर उनके वीर होने पर मोहर लगा दी थी। इसके बावजूद राहुल गांधी अपने बयानों के जरिए सावरकर जी पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करने से बाज नहीं आते हैं। ऐसा करके वो खुद अपनी दादी इंदिरा गांधी जी को ही अपमानित कर रहे हैं। वैसे भी राहुल गांधी के शब्दकोष में सम्मान नाम का कोई शब्द है ही नहीं।

कभी अपनी यानी कांग्रेस सरकार के भारत के प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह जी के निर्णय वाले पत्र को फाड़कर एक बुजुर्ग और सांसद का अपमान करने वाले भी राहुल गांधी ही थे। जिनको कभी ज्ञानी बुजुर्ग कांग्रेसी नेता को गलत ठहराने की हिम्मत करते नहीं देखा गया है। ऐसा लगता है कि सभी कांग्रेसी नेताओं का राजनीतिक डी.एन.ए. एक समान ही है। क्या कोई कांग्रेसी नेता यह बता सकता है कि महात्मा गांधी जी के विचारों के विरुद्ध नेहरू जी को कांग्रेस के राजनीतिक दल का नाम एवं तिरंगे को पहचान दिलाना गांधी जी का अपमान नहीं था? सरदार पटेल की का भारत जोड़ो अभियान के बदले नेहरू जी के द्वारा गुलाम कश्मीर की पहचान बना देना जिसे भारत तोड़ो अभियान भी कहा जाएगा। ऐसा करके पटेल जी का अपमान नहीं किया गया था? पटेल को मिले बहुमत के बाद भी नेहरू जी को प्रधानमंत्री बनाना भारत देश का अपमान नहीं हुआ? आज किस मुद्दे पर राहुल गांधी वीर सावरकर जी की देश भक्ति पर सवाल खेड़े कर रहे हैं? राहुल गांधी ने जिस पत्र को दिखाकर वीर सावरकर जी पर सवाल उठाए हैं वैसे पत्र तो कभी महात्मा गांधी जी ने भी लिखे थे।

एक समय था जब नाभा जेल में बंद जवाहर लाल नेहरू के लिए भी मोतीलाल नेहरू ने वायसराय से गुहार लगाई थी। हमारे बहुत से ऐसे देश भक्त भी हैं जिन्होंने अंग्रेजों पर छुपकर प्रहार किया। क्या उसे भी राहुल गांधी डरपोक मानेंगे? देश में जब आपातकाल लगा तब जयप्रकाश जी ने भी जेल से बचने के लिए रातों-रात नेपाल चले गए थे। क्या उन्हें भी राहुल गांधी कायर ही कहेंगे? सच तो यह है कि सावरकर जी की चिठ्ठी हो या महात्मा गांधी जी का पत्र, मोतीलाल जी का गुहारनामा हो या जयप्रकाश जी का नेपाल भागना? सभी कुछ समय की मांग थी। उसपर प्रश्नचिन्ह खड़ा करना ही सबसे बड़ी भूल है। भगवान न करे कि कभी देश की बागडोर ऐसे अज्ञानी के हाथ में आए। जो खुद ही सम्मान के योग्य नहीं हैं वो भला दूसरों को सम्मान देना क्या जानें? जो कोई भारतीय संस्कृति को राजनीतिक स्वार्थ हित समझे, भला उसे भारतीय संस्कृति का संस्कार कैसे मिल पाएगा।

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