मानो चाँद कह रहा हो – करवाचौथ स्पेशल | लघुकथा | जन-मंच | By- ज्योति व्यास (Jyoti Vyas)

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लो! आखिर चाँद महाशय निकल ही आए आसपास की छतों से शोर आना शुरू हो गया, “अरे, सुनती हो चाँद निकल आया, जल्दी आ जाओ” और डायरेक्ट शोरूम से निकली महिलाएँ निकल पड़ीं छत की चाँद की पूजन करने। डायरेक्ट शोरूम से निकली हुई मतलब बहुत सुंदर लग रही थीं सभी पूरे सोलह श्रृंगार के साथ!

और सुमि! वह अपनी छत पर अकेली खड़ी चाँद की तरफ़ एकटक देख रही थी। सोच रही थी, “क्या करवा और क्या चलनी?” किसके लिए पूजना है चाँद को ?
दो आँसू ढुलक गए आँखों से।

तभी सुमि ने महसूस किया जैसे चाँद कह रहा हो, “देखो सुमि, तुम्हीं अकेली दुखी नहीं हो दुनिया में! कई तरह के दुख से दुखी हैं लोग।मुझे ही देख लो। मेरे जीवन में हमेशा घट बढ़ चलती ही रहती है। अमावस्या को तो अदृश्य हो जाता हूँ।कई बार ग्रहण लगता है सो अलग ।पर फिर भी आशा नहीं छोड़ता हूँ। धीरे धीरे बढ़ कर पूनम को पूर्ण होता हूँ लेकिन अगले दिन से फिर घटना शुरू हो जाता हूँ।इसके बावजूद चाहे ईद हो, शरद पूर्णिमा हो या करवा चौथ हो, तुम सब लोगों को सिर्फ और सिर्फ ख़ुशियाँ ही बाँटता हूँ।”

चाँद की इस बात पर सुमि ने आँसू पोंछ लिए और नीचे उतर गई पूजा की थाली और कलश लाने। पूजा के बाद सुमि को लगा कि चाँद मुस्कुरा रहा है।शायद धन्यवाद कह रहा हो उसकी बात समझने के लिए ।
और हाँ ! सुमि भी मुस्कुरा रही थी।

ज्योति अप्रतिम

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