प्रधानमंत्री का जन्मदिन और सत्तर साल में चीतों की वापसी,कुख्यात डकैत रमेश सिंह बने चीता मित्र

Attention India
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते दिन अपना जन्मदिन कुछ अलग अंदाज़ में मनाया है,जिसकी चारों ओर चर्चा है।प्रधानमंत्री ने मध्य प्रदेश के श्योपुर व मोरेना जिले के बीच स्थित कुनो नेशनल पार्क में आज नमीबिया से लाये गए आठ चीतों को छोड़ा है।इन आठ चीतों में पांच मादा व तीन नर चीता हैं। तीन चीतों को प्रधानमंत्री से स्वयं अपने हाथों से रिलीज किया बाकी पांच को वहां वन विभाग के कर्मचारियों ने। प्रधानमंत्री के साथ मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी मौजूद रहे। प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर पर्यावरण संरक्षण व पारिस्थितिकी तंत्र के मज़बूत करने व जीव संरक्षण पर भाषण भी दिया। उन्होंने यह भी कहा कि बायोडायवर्सिटी बढ़ने के साथ साथ विकास की नई संभावनाओं का जन्म भी होगा। विकास की संभावनाएँ रोजगार के नए अवसर प्रदान करेंगी। उन्होंने पर्यटन को बढ़ावा मिलने की भी बात कही।

सत्तर सालों से किसी ने चीतों को लाने का प्रयास नहीं किया – मोदी

मोदी ने परोक्ष रूप से पिछली सरकारों पर तंज कसते हुए कहा कि किसी ने अब तक कोई कोशिश नहीं की। चीतों को भारत में फिर से बसाने को लेकर वरिष्ठ स्तम्भकार व समालोचक सुसंस्कृति परिहार लिखती है कि जन्मदिन पर शांति के प्रतीक माने जाने वाले पक्षी कबूतर को छोड़ प्रधानमंत्री एक खूंखार जानवर को जंगल में छोड़कर क्या साबित करना चाहते हैं। वो आगे लिखती हैं कि इसी के साथ चीतों को भारत में लाये जाने की कहानी भी सामने आ गयी। कांग्रेस शासन काल में जब चीतों की संख्या शून्य हो गयी थी तो सन २००९ में अफ्रीकन चीता लाने का प्रस्ताव रखा गया था। २०१० में मनमोहन सरकार से प्रस्ताव स्वीकार भी हुआ था। इसके लिए २५ अप्रैल २०१० को जयराम रमेश जी अफ्रीका भी गए और चीतों को देखा भी। २०११ में चीतों को भारत में लाये जाने के लिए ५० करोड़ रूपये भी आवंटित किये गए मगर उसी समय सुप्रीम कोर्ट द्वारा ‘प्रोजेक्ट चीता ‘ पर रोक लगा दिया गया। आश्चर्यजनक रूप से यह मामला २०१९ में फिर भाजपा सरकार में उठाया गया और सुप्रीम कोर्ट से रोक हट गयी।

करोड़ों में आये चीतों के सामने चुनौतियां, सर्वाइवल की समस्या ?

चीते जब जंगल में छोड़े जा रहे थे तो नई जगह पाकर वो बड़े ही सहम सहम कर कदम रख रहे थे। चीतों को जब नमीबिया से भारत लाया जा रहा था तो उनको ऐसे माहौल में रखा गया था कि उन्हें तनिक भी ऐसा एहसास न हो की वो जंगल में नहीं हैं। नमीबिया में उनका हेल्थ चेकअप भी किया गया। लेकिन अब यह देखना यह है कि यहां भारत की धरती पर चीते सर्वाइव कर पाते हैं या नहीं। सोशल मीडिया पर वन्य जीव जानकार वाल्मीकि थापर का एक वीडियो शेयर हो रहा जिसमे वो कहते हुए दिख रहे हैं की भारत के माहौल में ये चीते ज्यादा दिन खुद को सर्वाइव नहीं कर पाएंगे अगर चीते देखना है और उनको संरक्षित करने का गुर सीखना है तो अफ्रीका आयें। उन्होंने यहां के वन विभाग के अधिकारियों की हालत व प्रशासनिक तौर तरीकों को इंगित करते हुए कहा की भारत में जंगलों और जीवों के प्रति जो रवैया शासन प्रशासन का है उससे तो नहीं लगता की ये ज्यादा दिन चीतों को रख पाएंगे।
कुछ दिन पहले खबर आयी थी कि जंगल से एक हाथी के खोये शावक को वन विभाग की टीम नहीं खोज सकी ऐसी ख़बरें लगातार आती रहती हैं जो सिस्टम और उसके कार्य प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़ा करती है। यह भी ध्यान रखा जाना जरुरी है की ये चीते एशियाटिक नहीं आफ्रीकन हैं। जिनके शिकार करने का तौर तरीका और खान पान की शैली अलग है।वन विभाग के अधिकारी आतिशबाजी से ख़ुशी मना रहे जंगल में छोटे जानवरों के बीच यह चीता अब अपने नए सफर की शुरुआत कर चुका है।

बनाये गए करीब साढ़े चार सौ चीता मित्र,कुख्यात डाकू रमेश सिंह सिकरवार का नाम सबसे आगे

कहा जा रहा है कि चीतों की देखभाल व उनको शिकार से बचाये जाने के लिए आस पास के करीब ९० गावों से ४५७ लोगों को चीता मित्र बनाया गया है। इसमें ७०-८० दशक के कुख्यात डाकू रमेश सिंह सिकरवार का नाम भी शामिल है। प्रोजेक्ट चीता के इस समारोह अवसर पर वो भी मौजूद रहा। रमेश सिंह के ऊपर अब तक कई लोगों के मर्डर का मुकदमा दर्ज किया जा चुका है।

आस पास के गावों के क्या हैं हालात ?

कुनो नेशनल पार्क जिस जिले में स्थित है वहां सहरिया आदिवासी जातियों की बहुलता है। पहले कुछ गाँव जंगल के बीच भी बसे हुए थे मगर दो दशक पहले गावों को जंगल परिसीमा के बाहर बसा दिया गया। गावों की स्थितियां यथावत बनी हुई हैं। विकास के मामले में वैसे ही हैं जैसे अन्य आदिवासी गाँव हैं। चंबल नदी के बीहड़ जंगल व विंध्य पहाड़ की श्रेणियों से घिरे इस क्षेत्र में बड़ा विकास यही हो पाया है की मोदी अपने जन्मदिन पर चीतों से खाली देश में इस जंगल को चीतामय कर पाए। अब आगे देखिये आस पास रह रहे लोगों का जीवन इससे कितना सुखमय हो पाता है। वर्धा विश्वविद्यालय में समाज कार्य के पूर्व शिक्षक नरेंद्र दिवाकर का कहना है कि यह बहुत दुखद है की हमें अपने देश में चीता विदेश से लाकर रखना पड़ रहा है। हमें अपने देश की पारिस्थितिकी पर ध्यान देना होगा। सबसे ज्यादा ध्यान देने वाली बात यह है की राष्ट्रीय उद्यानों में जंगल सफारी सीमित या बंद कर देना चाहिये जिससे उनकी संख्या बढ़ सके। कुनो में , वही जहां चीतों को लाकर रखा गया है और सुरक्षा पर मोटी रकम खर्च की जायेगी ,वहां पास के ही गाँव कुपोषण का शिकार हैं। पर उनकी जिंदगी का मोल चीतों से बढ़कर कहाँ ?

ख़ैर अभी चारों ओर चीता ही चीता है। सत्तर सालों में चीतों की वापसी ही इस समय देश की सबसे बड़ी खबर बनी हुई है। जीते की रफ्तार पर बात हो रही। महंगाई,गरीबी व बेरोजगारी की रफ्तार कैसे बढ रही,इस पर बात ठप है।

रिपोर्ट- Attention india team

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