अपना परिवार सुखी परिवार बताने में घर की बहु की भूमिका महान होती है। अपने परिवार के बीच किसी सच्चाई को भी सीमित समय तक छुपाना ही उचित होता है। उसी तरह घर के किसी सदस्यों के बीच उनके कार्यक्षेत्र में दखल देना, सुझाव तक ही सीमित रहना उचित है। इसी विषय पर आधारित एक काल्पनिक लघु कथा प्रस्तुत है। यदि यह कथा आप में से किसी के जीवन की कहानी से मेल खाती है तो उसे मात्र एक संयोग ही समझा जाए। आज सुबह से ही भारी बारिश हो रही थी। किशनलाल ने इतनी तेज बारिश को देख, सारा समय आज घर पर ही बिताने की ठान ली थी। किशनलाल ने अपना समय बिताने के लिए एक योजना बनाई। जिसका नाम दिया गया ‘परिवार महासभा कार्यक्रम’। उस कार्यक्रम की रूप रेखा अपनी पत्नी सुशीला से बोले – सुशीला तुम कहां हो, जरा इधर तो आना। सुशीला जहां थी वह वहीं से अपने पति से बोली – मैं यहां अपने बेटे बहू से बातें कर रही हूं। अगर आपको अकेले दिल नहीं लग रहा है तो आप भी हमारे पास ही चले आओ। किशनलाल अपनी पत्नी से बोले – सुशीला आज मैं अपने कक्ष में परिवार महासभा कार्यक्रम का आयोजन कर रहा हूं। तुम बेटे और बहु के साथ मेरे ही कमरे में आ जाओ। पापा की बात सुनते ही रोहन मां से बोला – मां आज फिर से पापा की सभा में मुझे वही पुराने उपदेश सुनने को मिलेंगे। मुझे लगता है इस बार पापा ने अपनी बहु का समर्थन हासिल करने के लिए ही यह सभा बुलाई है। सुशीला अपने बेटे को समझाते हुए कहती है – बेटा, पापा का उपदेश चुपचाप से सुन लेना। बात वहीं खत्म हो जाएगी। अब बहु नीलमणि ने भी सास का समर्थन करते हुए अपने पति को समझाया – मम्मी ठीक ही तो कर रही हैं। वैसे भी पापा जो कुछ भी कहेंगे हमारी भलाई के लिए ही तो कहेंगे। उसे सुनने में क्या हर्ज है? इस बार रोहन चुप हो गया था। उसने अपने पापा के आदेश, मां की सलाह और पत्नी नीलमणि का सुविचार सुनकर हठ का हथियार डालना ही उचित समझा। किशनलाल अपना पक्ष मजबूत पाकर मन ही मन बहुत खुश हो रहा था। लेकिन मां सुशीला के माथे पर बेटे लिए चिंता की लकीर साफ दिखाई दे रही थी। उसे चिंता थी कि कहीं रोहन के पापा उसे कुछ ऐसी वैसी बात न बोल दें और रोहन को बुरा लग जाए। यही सब सोचते हुए सुशीला अपने पति किशनलाल के कमरे में गई और वहां जाते ही बोली – देखो जी, आप आज का दिन अपने बेटे और बहू के साथ मनाना चाहते हैं यह अच्छी बात है। लेकिन रोहन को बुरी लग जाए, ऐसी कोई बात बिलकुल न बोलना। वैसे भी, पहले की बात कुछ और थी, लेकिन अब हमारी बहु भी आ गई है। किशनलाल जी अपनी पत्नी की चेतावनी पर अपनी पत्नी सुशीला से बोले – सुशीला, क्या तुम समझती हो कि मैं रोहन का बुरा सोचूंगा? रोहन तो एक अच्छा और संस्कारवान लड़का है। उसके कर्म एवं निमार्ण पर मुझे पूरा भरोसा है। मुझे उस पर नाज़्ा है। लेकिन मैं ऐसी सच्चाई उसके सामने नहीं रख सकता हूं। सच तो यह है कि सामने की सच्चाई अहंकार को जन्म देती है। इसलिए हितकारी लोग अहंकार से बचने हेतु सामने सच्चाई छुपाता है। मैंने एक प्रसंग सुना है – महर्षि विश्वामित्र जी को अहंकार से बचाने के लिए वशिष्ट जी कभी ब्रह्मरिषि जैसी सच्चाई स्वीकार नहीं किया। परंतु वशिष्ट जी की पत्नी के पूछने पर परोक्ष में इस सच्चाई को स्वीकार कर लिया था। उस सच्चाई को जब छुपे हुए विश्वामित्र ने अपने कानों से सुन लिया तभी उनका अहंकार खत्म हो गया और उन्हें महर्षि विश्वामित्र स्वीकार कर लिया गया। मैं भी यही सब सोच कर कुछ सच्चाई रोहन से छुपाता आ रहा हूं। उसी समय किशनलाल ने अपने बेटे बहू को दूर से ही आते देख लिया था। इसलिए वह अपनी भाषा बदलते हुए पत्नी सुशीला से बोला – मैं तो बार बार रोहन से कहकर थक गया हूं। वह समझ नहीं रहा है कि अब उसकी जिम्मेदारी और बढ़ गई है। अब उसे एक अच्छी नौकरी कर लेनी चाहिए ताकि हर महीने एक निश्चित आमदनी आने लगे। इतने में ही रोहन अपनी पत्नी नीलमणि के संग पापा के रूम में प्रवेश करते ही अपनी मां से बोलता है – मां, मैं तो पहले ही आप से कह चुका था कि यह परिवार सभा नहीं बल्कि रोहन की छवि को खराब करने के लिए सभा बुलाई गई है। किशनलाल ने अपने बेटे से कहा कि इसमें तुम्हारी छवि खराब करने की बात कहां से आ गई। मैं जो कुछ भी कह रहा हूं केवल तुम्हारे भले के लिए ही कह रहा हूं। रोहन ने पिता से कहा – क्या? मैं जो कुछ भी कर रहा हूं आपको अच्छा नहीं लग रहा है? आप सिर्फ नौकरी को ही सही मानते हैं? किशनलाल जी अपने बेटे रोहन से कहते हैं – आज के युग में नौकरी मिलना भगवान के मिलने के बराबर माना जाता है। इस बार रोहन ने पापा पर एक तीखा शब्दबाण चला दिया। रोहन ने पापा से कहा – पापा आपने कभी किसी की नौकरी की है? रोहन के शब्दबाण से उसके पिता किशनलाल पस्त हो गए। वह धीमे स्वर में रोहन से बोले – हां बेटा, कुछ समय के लिए मैंने किसी की नौकरी की थी। लेकिन दिल न लगने के कारण मैंने नौकरी छोड़ दी। इतना कहते ही रोहन ने अपने पापा पर एक और शब्दबाण चला दिया। रोहन पापा किशनलाल से बोला – पापा, जब आपको भी नौकरी करना अच्छा नहीं लगा तो आप दूसरों पर वैसा विचार थोपने के लिए क्यों तैयार हैं? आप अगर अपने मन की बात ही करते हैं तो दूसरों को क्यों उतनी स्वतंत्रता नहीं देते हैं कि वह भी अपने मन की ही सुनें। पिता-पुत्र के वाद विवाद को देख सुशीला चिंतित हो उठी थी। वह अपने पति किशनलाल से बोली – रोहन बेटा ठीक ही तो कह रहा है। आपने अभी तक किया ही क्या है? पत्नी की बात सुनकर पति किशनलाल सुशीला से बोले – मैं भी तो यही चाहता हूं कि जो मैं नहीं कर पाया वह मेरा बेटा रोहन करके दिखाए। पत्नी सुशीला ने फिर पति पर सवाल दाग दिया और कहा – आप उसे अपने मन मुताबिक करने देंगे तब न? उसने अभी तक अपने दम पर ही तो सबकुछ किया है। अब बहु नीलमणि ने मम्मी सुशीला की चिंता और पिता-पुत्र के वाद-विवाद की कमान अपने हाथ में संभालना ही उचित समझा। बहु नीलमणि हाथ जोड़कर पापा से बोली – पापा आप आदेश दे ंतो मैं भी कुछ बोलूं? किशनलाल अपनी बहु के संस्कार, मधुर वाणी सुनकर किशनलाल अपनी बहु से बोले – हां बेटी, बोलो तुम क्या कहना चाह रही हो? तुम्हें इस घर के मामले में बोलने के लिए आदेश लेने की क्या जरूरत है? यह तो तेरा अधिकार है। जो बेटी अपना घर-परिवार, माता-पिता, को छोड़कर किसी दूसरे घर को बसाने आ जाए वह तो उस घर की लक्ष्मी होती है। वह उस घर रूपी मुकुट की मणि बन घर को स्वर्ग बना देती है। वैसे बहु जो कुछ भी कहेगी वह अपने परिवार के हित के लिए ही तो कहेगी। पापा की बात खत्म होने ही वाली थी कि बीच में ही रोहन अपनी मां सुशीला से बोला – मां, पापा की बहु चालीसा सुन रही हो न? ऐसी चालीसा मेरे बारे में आपने कभी सुनी है क्या? सुशीला अपने बेटे रोहन से कहती है – हां बेटा, तेरा भी गुणगान होता है। तेरे सामने तेरे खीझ के लिए तेरे पापा ऐसा करते हैं। मां की ऐसी बातें सुन रोहन वहां से चला जाता है। रोहन के जाते ही किशनलाल अपनी बहु नीलमणि से कहता है – देख लो न बेटी, रोहन सदा अपने मन की ही सुनता है। आप उसे अपनी मां की बातों पर भी विश्वास नहीं रहा। बहु नीलमणि पापा से बोलती है- यदि हम सब मिल कर एक ही परिवार का भला करने में लगे हैं तो हम सब गलत कैसे हो सकते हैं? पापा आप हमें सच बताएंगे कि नौकरी करके अपने परिवार का भरण-पोषण करना अच्छा है या फिर दूसरों को नौकरी देकर कई परिवारों का भरण-पोषण करना ज्यादा अच्छा है? किशनलाल को अपनी बहु की बुद्धिमानी पर गर्व हो रहा था। अब वह बहु के सामने सच बताना ही उचित समझने लगता है। किशनलाल ने अपनी बहु से कहा – बेटी, तू मेरी परीक्षा में सफल रही है। मुझे विश्वास हो गया है कि मेरी सोच को आगे बढ़ाने में रोहन को एक सच्चा साथी मिल गया है। बेटी यदि परिवार का चिराग बेटा होता है तो परिवार का प्रकाश यानी ज्योति बहु होती है। उसी समय रोहन हाथ जोड़ते हुए आता है और मुस्कुराते हुए एक बड़ा सा थैला पापा के आगे रख देता है। फिर रोहन पापा से कहता है – पापा बाहर बारिश कब की खत्म हो गई है। अब तो आप भी इस सभा को खत्म करिए। आपने इस परिवार सभा में सभी सदस्यों को ऐसा बांध दिया कि हम भोजन का ख्याल ही नहीं आया। इसलिए मैं पापा का मनपसंद भोजन समोसे और पकौड़े लाया हूं। किशनलाल बहुत खुश थे क्योंकि उनका बेटा भी खुुश था। सभी ने अपने अपने हिस्से के पकौड़े और समोसे उठाए और एक ठहाके के साथ सभा समाप्ति की घोषणा कर दी।
घर की ज्योति बहु – Story By Shyamanand Mishra
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