बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार पर एको अहम द्वितीय नास्ति कहावत एकदम सटीक बैठती है। यानी उनके बाद जदयू में वैसा वहां अब कोई भी नहीं रह गया है। इसी सोच को आगे बढ़ाते हुए नीतिश कुमार ने अब सार्वजनिक मंच से बयान दे दिया है कि – ‘जितनी सेवा करनी चाहिए हम कर रहे हैं, आगे तेजस्वी जी करते रहेंगे।‘ ऐसी सोच तो बुरे दौर से गुजर रही कांग्रेस का भी नहीं है। वे अब भी देश के प्रधानमंत्री राहुल गांधी के अलावा किसी और को नहीं मानते हैं। उसी मंच से तेजस्वी ने भी अपने चाचा को प्रधानमंत्री बनने का सपना दिखा दिया। अब अच्छा होता कि नितीश जी अपने कार्यकाल में ही जदयू का राजद में दिल के साथ ही साथ दल का भी विलय करवा देते। जिससे विपक्षी एकता का बहुत अच्छा संदेश जाता। अलग दल, अलग निशान वाले विपक्षी एकता को जनता अब अच्छे से समझ चुकी है। जनता यह जान चुकी है कि ऐसा संगठन जनता के हित के लिए नहीं बलकि राजनीतिक दलों के हित के लिए ही बनाए जाते हैं। नीतिश जी को यह सोचना चाहिए कि जो जदयू आज तक कभी भाजपा तो कभी राजद की बैसाखी पकड़ कर सरकार बना रही थी। अब बिहार में तीसरे नंबर की पार्टी बन कर उभर चुकी है। वह प्रधानमंत्री पद एवं विपक्षी एकता की बातें करते हैं। उन्हें ‘आप‘ पार्टी से सीख लेनी चाहिए। जो चंद दिनों में दो राज्यों की सरकार दिल्ली एमसीडी की सरकार के साथ अब राष्ट्रीय पार्टी बनने जा रही है। पता नहीं, नितीश की की उम्र के साथ नैतिकता एवं नीति दोनों बूढे़ हो चुके हैं। नही ंतो अपनी कमान अपनी पारी के बजाय किसी अन्य पार्टी को देने का कभी नहीं सोचते। आगे नितीश जी की सोच को जदयू किस तरह समर्थन देती है यह तो वक्त ही बताएगा। नीतिश जी को अब अपने वोटरों से ज्यादा विपक्षी एकता पर विश्वास होने लगा है जो लोकतंत्र में धोखा है। अब सवाल यह है कि नीतीश जी का सुशासन बाबू वाली उपाधि भाजपा काल की है। जो जंगलराज के विरुद्ध उन्हें मिली थी। आज वह राजद के साथ हैं। उन्हें नैतिकता के आधार पर सुशासन बाबू की उपाधि छोड़ देनी चाहिए। या जंगलराज समर्थित राजद का साथ। यह अब समय की मांग बन गया है।